चुम्बक:
चुम्बक एक ऐसा पदार्थ है जो लोहे और लोहे युक्त चीजों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह प्राकृतिक भी हो सकता है (जैसे लोडस्टोन) या कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है।
चुम्बक के प्रमुख गुण:
- प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं – उत्तरी ध्रुव (North Pole) और दक्षिणी ध्रुव (South Pole)।
- समान ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
- असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
- स्वतंत्र रूप से लटका चुम्बक हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकता है।
चुम्बकीय क्षेत्र:
- चुम्बक के चारों ओर एक अदृश्य क्षेत्र होता है जिसमें चुम्बक का प्रभाव अनुभव किया जाता है।
- इसे चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) कहते हैं।
- चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को दिक्सूचक (Compass) की मदद से पहचाना जा सकता है।
- SI मात्रक: टेस्ला (Tesla)
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण:
- चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं और दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होती हैं।
- ये रेखाएं कभी एक-दूसरे को काटती नहीं हैं।
-
- एक ही बिंदु पर दो दिशाएं संभव नहीं:
- यदि चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं एक-दूसरे को काटेंगी, तो उस बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएं होंगी।
- लेकिन यह भौतिक रूप से असंभव है, क्योंकि किसी बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र की केवल एक ही दिशा हो सकती है।
- चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की घनत्व से क्षेत्र की शक्ति का पता चलता है – घनत्व अधिक होने पर क्षेत्र मजबूत होता है।
- चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा हमेशा उत्तर से दक्षिण की ओर होती है।
विद्युत धारा और चुम्बकीय प्रभाव:
- जब किसी तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
- हैंस क्रिश्चियन ऑस्टेड (Hans Christian Oersted) ने पहली बार यह देखा कि विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है।
- यदि किसी विद्युत प्रवाहित तार के पास दिक्सूचक रखा जाए, तो उसकी सुई विचलित हो जाती है। यह दर्शाता है कि विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय प्रभाव होता है।
- विद्युत चुम्बकीय प्रभाव से मोटर, ट्रांसफार्मर और अन्य कई महत्वपूर्ण उपकरण काम करते हैं।
दाहिना हाथ अंगूठा नियम (Right Hand Thumb Rule):
यदि आप अपने दाहिने हाथ का अंगूठा किसी तार में धारा की दिशा में रखें, तो आपकी मुड़ी हुई उंगलियां चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाएंगी।
विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव
जब किसी चालक (तार) में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस परिघटना को विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहा जाता है।
विद्युत धारावाही वृताकार पाश (Circular Loop) का चुम्बकीय क्षेत्र
जब कोई वृताकार तार में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
मुख्य बिंदु:
1. संकेन्द्री वृत्त (Concentric Circles):
- चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं वृत के प्रत्येक बिंदु पर संकेन्द्री वृत्तों के रूप में होती हैं।
- इन वृत्तों की दिशा को दाहिने हाथ के अंगूठे नियम (Right-Hand Thumb Rule) द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
- यदि विद्युत धारा की दिशा आपके दाहिने हाथ के अंगूठे की दिशा में हो, तो आपकी मुड़ी हुई उंगलियां चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दर्शाती हैं।
2. वृत्तों का आकार:
- जैसे-जैसे हम तार से दूर जाते हैं, संकेन्द्री वृत्तों का आकार बढ़ता जाता है।
- इसका अर्थ है कि चुम्बकीय क्षेत्र तार के पास सबसे अधिक होता है और जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, क्षेत्र की शक्ति कम होती जाती है।
3. वृत्ताकार पाश के केंद्र पर:
- वृताकार पाश के केंद्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की रेखाएं लगभग सीधी होती हैं।
- केंद्र पर चुम्बकीय क्षेत्र अधिकतम होता है।
4. पाश के अंदर:
- पाश के अंदर सभी चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं एक समान दिशा में होती हैं।
- यह दर्शाता है कि चुम्बकीय क्षेत्र एक समान (Uniform) है।
वृत्ताकार पाश के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कारक
वृत्ताकार पाश का चुम्बकीय क्षेत्र निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
1. धारा (Current):
धारा का परिमाण बढ़ाने पर चुम्बकीय क्षेत्र भी बढ़ता है।
2. तार से दूरी (Distance):
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता तार के पास अधिक और दूर कम होती है।
3. फेरों की संख्या (Number of Turns):
- यदि पाश में फेरों की संख्या बढ़ाई जाती है, तो चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ जाता है।
- प्रत्येक फेरे का चुम्बकीय क्षेत्र दूसरे फेरे के क्षेत्र में जुड़ जाता है।
4. संयोजन (Superposition):
पाश के प्रत्येक फेरे से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र एक-दूसरे में जुड़ जाते हैं।
परिनालिका (Solenoid)
परिभाषा:
पास-पास लिपटे हुए तांबे के तार की बेलनाकार कुंडली को परिनालिका कहते हैं। जब इसमें विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो इसका चुम्बकीय क्षेत्र स्थायी छड़ चुम्बक के समान होता है।
मुख्य विशेषताएं:
1. चुम्बकीय क्षेत्र का स्वरूप:
- परिनालिका के अंदर चुम्बकीय क्षेत्र समान (Uniform) होता है।
- क्षेत्र रेखाएं परिनालिका के अंदर समानांतर होती हैं।
2. चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा:
- परिनालिका के अंदर – चुम्बकीय क्षेत्र दक्षिण से उत्तर की ओर होता है।
- परिनालिका के बाहर – चुम्बकीय क्षेत्र उत्तर से दक्षिण की ओर होता है।
3. छड़ चुम्बक की भांति:
- परिनालिका के दोनों सिरों पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव बनते हैं, ठीक वैसे ही जैसे स्थायी छड़ चुम्बक में होता है।
4. उपयोग:
- परिनालिका का उपयोग लोहे जैसी वस्तुओं को चुम्बक बनाने में किया जाता है।
- विद्युत चुम्बकों के निर्माण में इसका प्रमुख उपयोग होता है।
विद्युत चुम्बक V/S स्थायी चुम्बक
विषय |
विद्युत चुम्बक |
स्थायी चुम्बक |
चुम्बकत्व की अवधि |
अस्थायी, धारा बंद होने पर समाप्त |
स्थायी, चुम्बकत्व बना रहता है |
शक्ति का नियंत्रण |
बदली जा सकती है |
निश्चित होती है |
ध्रुवीयता |
बदली जा सकती है |
बदली नहीं जा सकती |
शक्ति का स्तर |
प्रायः अधिक शक्तिशाली |
अपेक्षाकृत कमजोर |
उपयोग |
इलेक्ट्रिक बेल, मोटर, क्रेन आदि |
कंपास, दरवाजों के लॉक आदि |
विद्युत धारावाही चालक पर चुम्बकीय बल
जब किसी विद्युत धारावाही चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उस पर बल कार्य करता है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. अंद्रे मेरी ऐम्पियर (Andre-Marie Ampere):
ऐम्पियर के अनुसार, चुम्बक किसी विद्युत धारावाही चालक पर समान परिमाण का बल लगाता है, परंतु उसकी दिशा विपरीत होती है।
2. धारा और बल का संबंध:
- यदि विद्युत धारा चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत होती है, तो बल अधिकतम होता है।
- जब विद्युत धारा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र के समान होती है, तो बल शून्य होता है।
3. धारा की दिशा बदलने पर बल की दिशा भी बदल जाती है।
फ्लेमिंग का वाम हस्त नियम (Fleming’s Left-Hand Rule)
नियम:
अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे को इस प्रकार फैलाएं कि वे एक-दूसरे के लंबवत हों:
- तर्जनी (Index Finger): चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दर्शाती है।
- मध्यमा (Middle Finger): विद्युत धारा की दिशा दर्शाती है।
- अंगूठा (Thumb): चालक पर लगने वाले बल की दिशा दर्शाता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:
1. मानव शरीर में चुम्बकीय प्रभाव:
- मानव हृदय और मस्तिष्क में महत्वपूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
2. MRI (Magnetic Resonance Imaging):
- चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग कर शरीर के आंतरिक अंगों की छवि प्राप्त की जाती है।
3. गेल्वेनोमीटर:
- यह उपकरण परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति और दिशा का पता लगाता है।
वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)
जब किसी चालक या कुंडली को परिवर्तनीय चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है। इस परिघटना को वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहा जाता है, और उत्पन्न धारा को प्रेरित विद्युत धारा (Induced Current) कहते हैं।
वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के प्रयोग और अवलोकन
1. क्रिया कलाप (Activity):
- प्रयोग सामग्री: एक कुंडली, एक स्थायी चुम्बक, और एक गेल्वेनोमीटर।
- प्रक्रिया:
- चुम्बक को कुंडली की ओर ले जाएं।
- चुम्बक को कुंडली के पास स्थिर रखें।
- चुम्बक को कुंडली से दूर ले जाएं।
- परिणाम:
- जब चुम्बक कुंडली की ओर बढ़ाया जाता है, तो गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप होता है, जो प्रेरित विद्युत धारा की उपस्थिति दर्शाता है।
- जब चुम्बक स्थिर रहता है, तो कोई विक्षेप नहीं होता।
- जब चुम्बक कुंडली से दूर ले जाया जाता है, तो गेल्वेनोमीटर में विपरीत दिशा में क्षणिक विक्षेप होता है।
स्पष्टीकरण:
- यह दर्शाता है कि चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन (Relative Motion) होने पर ही विद्युत धारा प्रेरित होती है।
- यदि चुम्बक और कुंडली के बीच कोई सापेक्ष गति नहीं होती, तो प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होती।
प्राथमिक और द्वितीयक कुंडली का प्रयोग (Mutual Induction)
प्रयोग सामग्री:
- दो कुंडलियाँ – एक प्राथमिक (Primary Coil) और एक द्वितीयक (Secondary Coil)।
- एक स्विच, बैटरी, और गेल्वेनोमीटर।
प्रक्रिया:
- प्राथमिक कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।
- द्वितीयक कुंडली के सिरों से गेल्वेनोमीटर जोड़ा जाता है।
- स्विच को चालू (ON) और बंद (OFF) किया जाता है।
परिणाम:
- जब स्विच चालू किया जाता है, तो गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप होता है।
- जब धारा स्थायी हो जाती है, तो कोई विक्षेप नहीं होता।
- जब स्विच बंद किया जाता है, तो गेल्वेनोमीटर में पुनः विपरीत दिशा में क्षणिक विक्षेप होता है।
स्पष्टीकरण:
- यह दर्शाता है कि प्राथमिक कुंडली में धारा के प्रवाह और कटाव के समय द्वितीयक कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।
- यह परिघटना परस्पर प्रेरण (Mutual Induction) कहलाती है।
फ्लेमिंग का दक्षिण (दायां) हस्त नियम (Fleming's Right-Hand Rule)
नियम:
अपने दाहिने हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठे को एक-दूसरे के लंबवत फैलाएं।
- तर्जनी (Index Finger): चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) की दिशा दर्शाती है।
- अंगूठा (Thumb): चालक की गति (Motion of Conductor) की दिशा दर्शाता है।
- मध्यमा (Middle Finger): प्रेरित विद्युत धारा (Induced Current) की दिशा दर्शाती है।
महत्व:
- इस नियम का उपयोग जनित्र (Generator) की कार्यप्रणाली में किया जाता है।
- यह नियम प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - AC)
परिभाषा:
वह विद्युत धारा जो समय के एक निश्चित अंतराल के बाद अपनी दिशा परिवर्तित कर लेती है, उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति 50 Hz होती है।
- इसका अर्थ है कि विद्युत धारा प्रति सेकंड 50 बार दिशा बदलती है।
- 1 चक्र (Cycle) का समय = 1/50 सेकंड (T = 20 मिलीसेकंड)।
- 50 Hz का अर्थ: 1 सेकंड में धारा 50 बार अपनी दिशा बदलती है, अर्थात 100 बार (50 बार एक दिशा में और 50 बार विपरीत दिशा में)।
प्रत्यावर्ती धारा के लाभ और हानि
लाभ |
हानि |
इसे लंबी दूरी तक कम ऊर्जा क्षय के साथ प्रेषित किया जा सकता है। |
प्रत्यावर्ती धारा को संचित (Store) नहीं किया जा सकता। |
इसका वोल्टेज ट्रांसफार्मर द्वारा बढ़ाया या घटाया जा सकता है। |
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सीधे उपयोग करना कठिन होता है। |
ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए उपयुक्त है। |
यह उपकरणों के लिए अधिक क्षति कर सकती है। |
दिष्ट धारा (Direct Current - DC)
परिभाषा:
वह विद्युत धारा जो समय के साथ अपनी दिशा परिवर्तित नहीं करती, उसे दिष्ट धारा (Direct Current) कहा जाता है।
दिष्ट धारा के स्रोत:
- बैटरी
- सेल
- संग्रह सेल (Accumulator Cell)
दिष्ट धारा के लाभ और हानि
लाभ |
हानि |
दिष्ट धारा को संचित किया जा सकता है। |
लंबी दूरी तक प्रेषित करने में ऊर्जा क्षय अधिक होता है। |
यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए उपयुक्त है। |
वोल्टेज बढ़ाना या घटाना कठिन है। |
बैटरियों में संग्रह कर उपकरणों को चलाने में सहायक। |
भारी ट्रांसफार्मर और उपकरणों की आवश्यकता होती है। |
प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा का तुलनात्मक अध्ययन
विशेषता |
प्रत्यावर्ती धारा (AC) |
दिष्ट धारा (DC) |
दिशा परिवर्तन |
समय-समय पर दिशा बदलती है। |
दिशा परिवर्तन नहीं होता। |
ऊर्जा क्षय |
लंबी दूरी तक न्यूनतम ऊर्जा क्षय। |
लंबी दूरी तक अधिक ऊर्जा क्षय। |
संचयन (Storage) |
संचित नहीं की जा सकती |
संचित की जा सकती है। |
प्रयोग |
घरों, उद्योगों में उपयोग। |
बैटरियों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग। |
वोल्टेज परिवर्तन |
ट्रांसफार्मर द्वारा बढ़ाया या घटाया जा सकता है। |
वोल्टेज परिवर्तित करना कठिन होता है। |
घरेलू विद्युत परिपथ (Household Electric Circuit)
घर में विद्युत आपूर्ति के लिए एक व्यवस्थित परिपथ की आवश्यकता होती है, जिसमें सुरक्षा और कार्यकुशलता का ध्यान रखा जाता है। घरेलू विद्युत परिपथ में मुख्य रूप से तीन प्रकार की तारें उपयोग की जाती हैं।
घरेलू विद्युत परिपथ में प्रयुक्त तारें
1. विद्युन्मय तार (Live Wire):
- रंग: लाल (Red)
- कार्य: विद्युत धारा की आपूर्ति करता है।
- वोल्टता: 220 V
2. उदासीन तार (Neutral Wire):
- रंग: काला (Black)
- कार्य: विद्युत धारा को वापस विद्युत प्रदाय बोर्ड तक पहुंचाता है।
- वोल्टता: 0 V
3. भूसंपर्क तार (Earth Wire):
- रंग: हरा (Green)
- कार्य: विद्युत आघात से बचाव के लिए विद्युत धारा के क्षरण (Leakage) को जमीन तक प्रवाहित करता है।
- वोल्टता: 0 V (सामान्यतः)
विशेष तथ्य:
- भारत में विद्युन्मय तार और उदासीन तार के बीच 220 V का विभवांतर (Potential Difference) होता है।
घरेलू विद्युत आपूर्ति प्रणाली के घटक
- खंभा (Pole): विद्युत आपूर्ति बोर्ड द्वारा दी जाने वाली बिजली खंभे से घर तक पहुंचाई जाती है।
- मुख्य आपूर्ति फ्यूज (Main Fuse): मुख्य आपूर्ति लाइन पर लगाया जाता है, ताकि किसी भी अधिभारण (Overload) या लघुपथन (Short Circuit) से सुरक्षा हो सके।
- विद्युतमापी (Electric Meter): घर में उपभोग की गई विद्युत ऊर्जा की मात्रा को मापता है।
- वितरण बक्स (Distribution Box): इसमें मुख्य स्विच और प्रत्येक परिपथ के लिए पृथक फ्यूज होते हैं।
- पृथक परिपथ (Separate Circuit): घर के अलग-अलग हिस्सों के लिए अलग-अलग परिपथ होते हैं, जिससे सुरक्षा बढ़ती है।
भूसंपर्क तार का महत्व (Importance of Earth Wire)
- यदि किसी विद्युत उपकरण (Appliance) के धात्विक आवरण (Metal Casing) में विद्युत धारा का क्षरण होता है, तो भूसंपर्क तार इसे जमीन तक पहुंचा देता है।
- भूसंपर्क तार विद्युत आघात (Electric Shock) से बचाव करता है।
- यह धारा के क्षरण के समय अल्प प्रतिरोध पथ (Low Resistance Path) प्रदान करता है, जिससे उपकरण सुरक्षित रहता है।
लघुपथन (Short Circuit)
परिभाषा:
जब विद्युन्मय तार और उदासीन तार आकस्मिक रूप से एक-दूसरे के संपर्क में आ जाते हैं, तो इसे लघुपथन (Short Circuit) कहा जाता है।
परिणाम:
- परिपथ में प्रतिरोध (Resistance) बहुत कम हो जाता है।
- अत्यधिक विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है, जिससे अतिभारण (Overload) हो सकता है।
- आग लगने या उपकरणों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
अतिभारण (Overloading)
परिभाषा:
जब किसी विद्युत परिपथ में उसकी क्षमता से अधिक विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो इसे अतिभारण (Overloading) कहते हैं।
कारण:
- आपूर्ति वोल्टता में आकस्मिक वृद्धि।
- एक ही सॉकेट में अनेक विद्युत उपकरणों को जोड़ना।
- खराब तारों या उपकरणों का उपयोग।
घरेलू विद्युत परिपथ में सुरक्षा उपाय
1. विद्युत फ्यूज (Electric Fuse):
- यह एक पतली तार होती है, जो अधिक धारा प्रवाहित होने पर पिघल जाती है और परिपथ को तोड़ देती है।
- यह अतिभारण और लघुपथन से सुरक्षा प्रदान करता है।
2. भूसंपर्क तार (Earth Wire):
- उपकरण में धारा के क्षरण होने पर विद्युत धारा को सीधे जमीन तक प्रवाहित करता है, जिससे हमें विद्युत आघात से बचाव मिलता है।
3. मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (M.C.B):
- यह एक स्वचालित स्विच है, जो परिपथ में अधिक धारा प्रवाहित होने पर अपने आप बंद हो जाता है।
- MCB के पुनः चालू करने के लिए मैन्युअल रूप से स्विच को चालू करना पड़ता है।
- यह पारंपरिक फ्यूज से अधिक प्रभावी होता है।
प्रश्नावली (Important Questions)
- घरेलू विद्युत परिपथ में कितने प्रकार की तारें उपयोग की जाती हैं? उनका कार्य समझाइए।
- भूसंपर्क तार का क्या महत्व है?
- लघुपथन क्या होता है? इसके कारण और परिणाम लिखिए।
- अतिभारण के मुख्य कारण क्या हैं?
- विद्युत फ्यूज और M.C.B. में क्या अंतर है?
- घरेलू विद्युत परिपथ में सुरक्षा के लिए कौन-कौन से उपकरण उपयोग किए जाते हैं?