2. लेंस (Lens):
3. परितारिका (Iris):
4. पुतली (Pupil):
5. दृष्टिपटल(Retina):
दूर बिंदु (For Point) - वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।
निकट बिंदु (Near point) वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे नेत्र का निकट बिंदु कहते हैं।
• किसी सामान्य दृष्टि के कारण वयस्क के लिए निकट बिंदु आँख से लगभग 25cm की दूरी पर होता है।
• इसे सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी भी कहते हैं।
समंजन क्षमता (Accommodation)
अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है, लेंस की वक्रता पक्ष्माभी पेशियों द्वारा नियंत्रितत की जाती है।
इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता।
• ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर-बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है।
दोष उत्पन्न होने के कारण
(i) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना
(ii) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।
निवारण
इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
दीर्घ-दृष्टि दोष ( Hypermetropia )
दीर्घ दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट-बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25cm) से दूर हट जाता है।
दोष उत्पन्न होने के कारण
i.अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना।
ii.नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
निवारण
इस दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लेंस का इस्तेमाल करके संशोधित किया जा सकता है।
आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र में समंजन-क्षमता घट जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदु दूर हट जाता है। इस दोष को जरा-दूरदृष्टिता कहते हैं।
कारण : यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है।
निवारण
उत्तल लेंस के प्रयोग से।
• कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट-दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष होते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों की आवश्यकता होती ऊपरी भाग अवतल लेंस और निचला भाग उत्तल लेंस होता है।
प्रिज्म के दो प्रकाशाकार आधार और तीन पार्श्व पृष्ठ-पृष्ठ होते हैं।
प्रिज्म कोण - प्रिज्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।
विचलन कोण - आपतित किरण एवं निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहते हैं।
काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण
स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम) : सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म से होकर गुजरता है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को सात रंगों की पट्टी में विभक्त कर देता है। यह सात रंग है- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम) कहते हैं।
विक्षेपण : प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं।
VIBGYOR एक संक्षिप्त रूप है, जो वर्णक्रम (Spectrum) के सात रंगों को याद रखने में मदद करता है। ये रंग हैं:
तारों का टिमटिमाना ( Twinkling of Stars ) -
दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिंदु स्रोत के समान प्रतीत होता है। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है। चूँकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला,
वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात तक दिखाई देता रहता है
वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है।
• वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव
(i) तारों का टिमटिमाना
(ii) पूर्व सूर्योदय और विलंबित सूर्य
(iii) तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना।
(iv) गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना।
टिंडल प्रभाव ( Tyndall Effect )
जब कोई प्रकाश किरण का पुंज वायुमण्डल के महीन कणों जैसे धुआँ, जल की सूक्ष्म बूंदें, धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है।
उदाहरण :
1. जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो हम टिंडल प्रभाव देख सकते हैं।
2. जब किसी घने जंगल के वितान से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो भी टिन्डल प्रभाव को देखा जा सकता है।
Rayleigh का नियम : प्रकाश का प्रकीर्णन (scattering) उसकी तरंग दैर्ध्य (wavelength) के चौथे घात (λ⁴) के व्युत्क्रमानुपाती होता है। प्रकीर्णन ∝ 1/λ⁴
प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन प्रकीर्णन न करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है।
(i) अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
(ii) बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
(iii) यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।
प्रश्न स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है ?
उत्तर - जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, तो हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण और गैस के अणु प्रकाश को इधर-उधर बिखेरते हैं। नीले रंग की तरंगें छोटी होती हैं और वे अन्य रंगों की तुलना में ज्यादा बिखरती हैं। यही कारण है कि जब हम आकाश की ओर देखते हैं तो हमें नीला रंग दिखाई देता है।
प्रश्न-ऊँचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश काला क्यों प्रतीत होता है ?
उत्तर-क्योंकि वहाँ वायुमंडल पतला होता है। इतनी ऊँचाई पर प्रकीर्णन नहीं होता। इसलिए प्रकाश सीधे आँखों में आता है और आकाश काला दिखाई देता है।
प्रश्न- बादल सफेद क्यों प्रतीत होते हैं ?
उत्तर-बादल सूक्ष्म पानी की बूंदों से बने होते हैं ये सूक्ष्म बूंदों का आकार दृश्य किरणों की तरंगदैर्ध्य की सीमा से अधिक है। इसलिए जब श्वेत प्रकाश इन कणों से टकराता है तो सभी दिशा में परावर्तित या प्रकीर्ण हो जाता है। क्योंकि श्वेत प्रकाश के सभी रंग परावर्तित या प्रकीर्ण अधिकतम समान रूप से होते हैं। इसलिए हमें श्वेत रंग ही दिखाई देता है।
प्रश्न- ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ?
उत्तर- ग्रह टिमटिमाते नहीं हैं क्योंकि वे तारे की तरह स्वयं प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते, बल्कि सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं। ग्रह पृथ्वी के काफी निकट होते हैं और उनका आकार स्पष्ट रूप से दिखता है, जबकि तारे अत्यधिक दूर होने के कारण एक बिंदु स्रोत की तरह प्रतीत होते हैं।
जब वायुमंडल में हवा की परतें हिलती हैं, तो तारों से आने वाला प्रकाश विचलित होता है, जिससे तारे टिमटिमाते नजर आते हैं। ग्रहों का प्रकाश अपेक्षाकृत बड़ा और विस्तृत होता है, इसलिए वायुमंडलीय विक्षेपण (atmospheric refraction) का प्रभाव ग्रहों पर कम पड़ता है, और वे टिमटिमाते नहीं हैं।
प्रश्न 'खतरे' का संकेत लाल रंग का क्यों होता है ?
उत्तर - 'खतरे' के संकेत का रंग लाल इसलिए होता है क्योंकि रेली के नियम के अनुसार, लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है। चूँकि प्रकीर्णन (scattering) तरंग दैर्ध्य के चौथे घात के व्युत्क्रमानुपाती होता है, इसलिए: