जैव प्रक्रम
जैव प्रक्रम वे सभी प्रक्रियाएँ होती हैं जो जीव के जीवन के संचालन, विकास और संरक्षा में सहायक होती हैं। यह शरीर में पोषण, श्वसन, वाहक, और उत्सर्जन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करते हैं।
पोषण (Nutrition)
पोषण : भोजन ग्रहण करने, पचे भोजन का अवशोषण और उसका शरीर के लिए उपयोग करने की प्रक्रिया को कहते हैं। पोषण के आधार पर जीवों को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जाता है:
1.1 स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition)
स्वपोषी पोषण में जीव अपनी आवश्यकताएँ स्वयं तैयार करते हैं। यह प्रक्रम मुख्य रूप से हरे पौधों और कुछ जीवाणुओं द्वारा किया जाता है, जो सूर्य के प्रकाश, जल और कार्बन डाइऑक्साइड से अपना भोजन बनाते हैं।
उदाहरण: हरे पौधे, कुछ बैक्टीरिया।
1.2 विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)
विषमपोषी पोषण में जीव अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते और दूसरों जीवों पर निर्भर होते हैं। यह पोषण मुख्य रूप से मानव और अन्य जानवरों में देखा जाता है।
उदाहरण: मानव, शेर, अन्य जानवर।
विषमपोषी पोषण के प्रकार :
प्रकार |
विवरण |
उदाहरण |
प्राणीसमपोषण (Holozoic Nutrition) |
इसमें जीव संपूर्ण भोज्य पदार्थ का सेवन करते हैं और उनका पाचन शरीर के अंदर होता है। |
मानव, शेर, हाथी, अन्य जानवर |
मृतजीवीपोषण (Saprophytic Nutrition) |
इसमें जीव दूसरों के शरीर पर या अंदर रहकर, बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए, उनसे पोषण प्राप्त करते हैं। |
फफूंदी, कवक, बैक्टीरिया |
परजीवीपोषण (Parasitic Nutrition) |
इसमें जीव दूसरों के शरीर पर या अंदर रहकर, बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए, उनसे पोषण प्राप्त करते हैं। |
अमरबेल, जूँ, फीताकृमि |
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)
प्रकाश संश्लेषण वह प्रक्रिया है जिसमें स्वपोषी जीव, जैसे हरे पौधे, कार्बन डाइऑक्साइड और जल को उपयोग करके और सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा प्राप्त करके अपना भोजन (ग्लूकोज) बनाते हैं।
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ
- सूर्य का प्रकाश
- क्लोरोफिल
- कार्बन डाइऑक्साइड (स्थलीय पौधे इसे वायुमंडल से प्राप्त करते हैं)
- जल (स्थलीय पौधे इसे जड़ों से मिट्टी से अवशोषित करते हैं)
प्रकाश संश्लेषण में होने वाली घटनाएँ
- सूर्य से प्रकाश ऊर्जा को क्लोरोफिल अवशोषित करता है।
- प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है और जल अणुओं का हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजन होता है।
- कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन कर कार्बोहाइड्रेट (ग्लूकोज) बनता है।
रंध्र (Stomata)
पत्तियों की सतह पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिन्हें रंध्र कहा जाता है। ये गैसों के आदान-प्रदान और वाष्पोत्सर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रंध्र के कार्य
- गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन) का आदान-प्रदान।
- जल वाष्प का उत्सर्जन।
5. अमीबा में पोषण (Nutrition in Amoeba)
अमीबा एक प्रोटोजोआ है जो अपना भोजन बाह्य रूप से ग्रहण करता है।
- यह अपना भोजन पादाभ की सहायता से अपने आसपास के खाद्य कणों को घेर लेता है।
- बाद में यह भोजन खाद्य रिक्तिका में संचित होता है, जहां जटिल पदार्थों का सरल पदार्थों में अपघटन होता है।
- अपच पदार्थ कोशिका की सतह पर निष्कासित कर दिए जाते हैं।
मनुष्य में पोषण
मनुष्य में पोषण की प्रक्रिया आहार नलिका में होती है, जो मुंह से गुदा तक विस्तारित एक लंबी नली है। इसमें भोजन का ग्रहण, पाचन, अवशोषण, और बहिर्क्षेपण (Excretion) होता है।
1. आहार नलिका (Alimentary Canal)
आहार नलिका मुंह से गुदा तक विस्तारित होती है और इसमें निम्नलिखित अंग शामिल हैं:
मुखगुहा (Mouth)
- भोजन का ग्रहण और चबाना।
- जिह्वा (Tongue) - भोजन को चबाने और लार के साथ मिश्रित करने में सहायक।
- दाँत - भोजन को टुकड़ों में तोड़ना।
- लार ग्रंथि - लार (Saliva) का स्राव, जो भोजन को नम करता है और उसमें एंजाइम एॅमाइलेज होता है, जो स्टार्च को माल्टोस में बदलता है।
ग्रसिका (Esophagus)
- यह भोजन को मुँह से आमाशय (Stomach) तक ले जाती है। इसमें परिस्ताल्टिक गति (Peristaltic Movement) होती है, जो आंत की मांसपेशियों के संकुचन और विस्तार द्वारा भोजन को आगे बढ़ाती है।
आमाशय (Stomach)
- जठर ग्रंथियाँ पाचक एंजाइम (जैसे पेप्सिन) और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) का स्राव करती हैं।
- पेप्सिन प्रोटीन का पाचन करता है।
- म्यूकस (Mucus): आमाशय की दीवार में मौजूद ग्रंथियाँ एक गाढ़ा श्लेष्म (mucus) स्रावित करती हैं, जो आंतरिक अस्तर को HCl और पेप्सिन से बचाता है।
- हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पाचन के लिए अम्लीय वातावरण तैयार करता है ।
क्षुद्रांत्र (Small Intestine)
- यहां भोजन का अंतिम पाचन होता है।
- यकृत (Liver) और अग्नाशय (Pancreas) से पाचक रसों का स्राव होता है।
- पित्त रस (Bile) - वसा का इमल्सीकरण (Emulsification) करता है।
- अग्नाशयिक रस (Pancreatic Juice) - इसमें ऐमिलेज (Amylase), ट्रिप्सिन (Trypsin), और लाइपेज (Lipase) होते हैं जो क्रमशः स्टार्च, प्रोटीन और वसा का पाचन करते हैं।
बृहद्रांत्र (Large Intestine)
- यहां जल का अवशोषण होता है और अपचित पदार्थों को गुदा द्वारा शरीर से बाहर कर दिया जाता है।
- विली (Villi) - क्षुद्रांत्र की आंतरिक दीवारों पर स्थित सूक्ष्म रोम, जो अवशोषण की सतही क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं।
2. पाचन के मुख्य चरण
- पाचन में लार का योगदान:
- लार में एंजाइम एॅमाइलेज होता है, जो स्टार्च को माल्टोस (Maltose) में बदलता है।
- आमाशय में पाचन:
- पेप्सिन प्रोटीन का पाचन करता है।
- हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पेप्सिन के कार्य को सहायक बनाता है
- क्षुद्रांत्र में पाचन:
- यकृत द्वारा उत्पन्न पित्त रस वसा का इमल्सीकरण करता है।
- अग्नाशय द्वारा उत्सर्जित रस में ऐमिलेज, ट्रिप्सिन, और लाइपेज होते हैं जो क्रमशः कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, और वसा का पाचन करते हैं।
श्वसन (Respiration)
पोषण प्रक्रम के दौरान ग्रहण की गई खाद्य सामग्री का उपयोग कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया को कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration) कहते हैं, जिससे कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है।
1. ग्लूकोज का विखंडन
- ग्लूकोज (C₆H₁₂O₆) को पायरूवेट (Pyruvate) में बदला जाता है, जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- यह प्रक्रिया दो प्रकार से होती है:
i. वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration)
- ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।
- ग्लूकोज का पूर्ण उपचयन होता है।
- उत्पादन: कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) + जल (H₂O) + ऊर्जा (36 ATP)
- यह माइटोकॉन्ड्रिया में होता है।
- उदाहरण: मानव।
ii. अवायवीय श्वसन (Anaerobic Respiration)
- ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
- ग्लूकोज का अपूर्ण उपचयन होता है।
- उत्पादन: एथेनॉल (Ethanol) + कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) + ऊर्जा (2 ATP) (जैसे यीस्ट में होता है)
- लैक्टिक अम्ल (Lactic Acid) + ऊर्जा (हमारी मांसपेशियों में, जब ऑक्सीजन की कमी होती है)
- यह कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) में होता है।
- उदाहरण: यीस्ट, मानव मांसपेशी कोशिकाएँ।
मानव श्वसन तंत्र (Human Respiratory System)
नासाद्वार → 2. ग्रसनी → 3. कंठ → 4. श्वास नली → 5. श्वसनिका → 6. फुफ्फुस (फेफड़े) → 7. कूपिका कोश → 8. रुधिर वाहिकाएं
मानव श्वसन तंत्र शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने का कार्य करता है। यह तंत्र श्वसन के विभिन्न अंगों और संरचनाओं से बना होता है:
1. नासाद्वार (Nostrils)
- श्वसन प्रक्रिया का पहला चरण नासाद्वार से होता है, जो नाक के छिद्र होते हैं। यहाँ से वायु श्वसन तंत्र में प्रवेश करती है। नासाद्वार के माध्यम से वायु साफ, गर्म और आर्द्र होती है, ताकि फेफड़ों में पहुंचने वाली वायु की गुणवत्ता बनी रहे।
2. ग्रसनी (Pharynx)
- नासाद्वार से वायु ग्रसनी में पहुंचती है। यह श्वसन और पाचन तंत्र का साझा अंग है, जो गले के पीछे स्थित होता है। इसमें वायुमार्ग (respiratory tract) और पाचन मार्ग (digestive tract) दोनों का मिलन होता है।
3. कंठ (Larynx)
- ग्रसनी से वायु कंठ में जाती है, जिसे 'स्वर यंत्र' भी कहा जाता है। यह आवाज़ पैदा करने में मदद करता है और वायु को श्वसन नलिका (trachea) में मार्ग प्रदान करता है। कंठ में स्थित 'एपिग्लॉटिस' नामक संरचना भोजन और वायु को अलग-अलग मार्गों में भेजने का काम करती है।
4. श्वास नली (Trachea)
- कंठ से वायु श्वास नली (trachea) में जाती है। यह एक लंबी, कठोर नली होती है, जो मुख्य रूप से उपास्थि वलयों (cartilage rings) से बनी होती है ताकि यह वायु मार्ग खुला रहे। श्वास नली फेफड़ों तक वायु को पहुंचाती है।
5. श्वसनिका (Bronchi)
- श्वास नली फेफड़ों में प्रवेश करने से पहले दो प्रमुख श्वसनिकाओं (bronchi) में विभाजित होती है। प्रत्येक श्वसनिका एक फेफड़े में प्रवेश करती है, जिससे वायु फेफड़ों तक जाती है।
6. फुफ्फुस (Lungs)
- श्वसनिकाएं फेफड़ों में प्रवेश करने पर और भी छोटी-छोटी शाखाओं में बंट जाती हैं, जिन्हें 'ब्रोंकीओल्स' (bronchioles) कहा जाता है। ब्रोंकीओल्स के अंत में छोटे-छोटे कूपिकाएँ (alveoli) होते हैं, जहाँ गैसों का आदान-प्रदान होता है।
7. कूपिका कोश (Alveolar Cells)
- कूपिकाएँ छोटे-छोटे, वायु से भरे हुए बुलबुले होते हैं, जो फेफड़ों के अंतिम हिस्से में स्थित होते हैं। यहाँ पर ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है। ऑक्सीजन रक्त में प्रवेश करती है और कार्बन डाइऑक्साइड रक्त से बाहर निकलती है।
8. रक्त वाहिकाएं (Blood Vessels)
- कूपिकाओं के पास रक्त वाहिकाएँ (specifically, capillaries) होती हैं, जहाँ से गैसों का आदान-प्रदान होता है। ऑक्सीजन रक्त में घुलती है और कार्बन डाइऑक्साइड रक्त से बाहर निकलकर फेफड़ों में जाती है।
- श्वसन क्रिया (Respiratory Process)
प्रक्रिया |
विवरण |
अंतःश्वसन (Inhalation) |
1. फेफड़े फैलते हैं।
2. श्वसन गुहा का आकार बढ़ता है।
3. वायु का दबाव कम हो जाता है।
4. वातावरण से वायु फेफड़ों में घुस जाती है।
5. पसलियों के आसपास की मांसपेशियाँ सिकुड़ती हैं और छाती बाहर की ओर जाती है।
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उच्छवसन (Exhalation) |
1. फेफड़े अपने सामान्य आकार में वापस आ जाते हैं।
2. पसलियों की मांसपेशियाँ शिथिल हो जाती हैं।
3. छाती की दीवार अंदर की ओर खींची जाती है।
4. गुहा का दबाव बढ़ जाता है।
5. CO₂ से समृद्ध वायु फेफड़ों से बाहर निकल जाती है।
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गैसों का आदान-प्रदान (Gas Exchange)
ऑक्सीजन (O₂) का प्रवेश:
- कूपिका → रक्त (ऑक्सीजन रक्त में प्रवेश करता है)
- रक्त में स्थित हीमोग्लोबिन + O₂ → ऑक्सीहेमोग्लोबिन (HbO₂) बनता है।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का निष्कासन:
- रक्त → कूपिका (CO₂ रक्त से कूपिकाओं में स्थानांतरित होती है)
- कूपिका → बाहर (CO₂ फेफड़ों के माध्यम से बाहर निकलती है)
मानव संवहन तंत्र (Human Circulatory System)
संवहन तंत्र शरीर के सभी अंगों और ऊतकों को पोषक तत्वों, ऑक्सीजन और अन्य आवश्यक पदार्थों की आपूर्ति करता है, और अपशिष्ट पदार्थों (जैसे CO₂, यूरिया) को निकालता है। यह तंत्र हृदय, रक्त वाहिकाओं और रक्त से मिलकर बना है।
1. हृदय (Heart)
हृदय (Heart) का कार्य - आसान तरीके से समझें:
हृदय एक पंप की तरह काम करता है और रक्त को शरीर के विभिन्न हिस्सों में भेजता है। हृदय का कार्य एक चक्रीय प्रक्रिया (cycle) में होता है, जिसे हम हृदय का परिसंचरण कहते हैं। इसे 4 मुख्य चरणों में समझ सकते हैं:
1.रक्त का आगमन (Blood Arrival):
- दायाँ आलिंद (Right Atrium): शरीर से अक्सीजन रहित रक्त (CO₂ से भरपूर) सिवर और शिराओं के माध्यम से हृदय के दायाँ आलिंद में आता है।
- बायाँ आलिंद (Left Atrium): फेफड़ों से ऑक्सीजनयुक्त रक्त (O₂ से समृद्ध) फुफ्फुस शिरा के माध्यम से हृदय के बायें आलिंद में आता है।
2. आलिंद से निलय में रक्त का प्रवेश (Blood Flow from Atria to Ventricles):
- दायाँ आलिंद → दायाँ निलय (Right Atrium → Right Ventricle): दायाँ आलिंद का रक्त दायें निलय में जाता है।
- बायाँ आलिंद → बायाँ निलय (Left Atrium → Left Ventricle): बायाँ आलिंद का रक्त बाएं निलय में जाता है।
- वाल्व (जैसे ट्रिकसपिड और माइट्रल वाल्व) रक्त प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं, ताकि वह एक ही दिशा में रहे और उल्टा न हो।
3. रक्त का पंप होना (Pumping of Blood):
- दायाँ निलय → फेफड़े (Right Ventricle → Lungs): दायाँ निलय ऑक्सीजन रहित रक्त को फेफड़ों में भेजता है ताकि वह वहाँ से ऑक्सीजन ले सके।
- बायाँ निलय → शरीर के बाकी हिस्से (Left Ventricle → Rest of the Body): बायाँ निलय ऑक्सीजनयुक्त रक्त को पूरे शरीर में भेजता है, ताकि शरीर के अंगों को ऑक्सीजन मिल सके।
4. रक्त का वापस लौटना (Blood Return):
- फेफड़ों से ऑक्सीजनयुक्त रक्त शिराओं द्वारा बायें आलिंद में वापस आता है।
- शरीर से ऑक्सीजन रहित रक्त शिराओं द्वारा दायें आलिंद में वापस आता है।
- यह चक्रीय प्रक्रिया लगातार चलती रहती है, जिससे शरीर को आवश्यक ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते रहते हैं।
2. रक्त वाहिकाएं (Blood Vessels)
i. धमनी (Artery):
- रक्त को हृदय से शरीर के अंगों तक ले जाती है।
- धमनी की भित्ति मोटी होती है।
- उच्च दबाव में रक्त को संभालने की क्षमता होती है।
- वाल्व नहीं होते, क्योंकि रक्त एक दिशा में प्रवाहित होता है।
ii. शिरा (Vein):
- रक्त को शरीर के अंगों से हृदय में वापस लाती है।
- शिराओं में वाल्व होते हैं।
- वाल्व रक्त को एक दिशा में प्रवाहित करने में मदद करते हैं।
- शिराओं की भित्ति पतली होती है और रक्त दबाव कम होता है।
3. रक्त (Blood)
रक्त (Blood) मुख्य रूप से चार घटकों से बना होता है:
1. लाल रक्त कणिकाएं (RBCs - Red Blood Cells):
- कार्य: लाल रक्त कणिकाएं मुख्य रूप से ऑक्सीजन (O₂) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का परिवहन करती हैं। ये कणिकाएं फेफड़ों से शरीर के विभिन्न अंगों तक ऑक्सीजन पहुँचाती हैं, और शरीर के विभिन्न अंगों से CO₂ वापस फेफड़ों तक पहुँचाती हैं, जहाँ यह श्वसन द्वारा बाहर निकल जाती है।
- विशेषताएँ:
- RBCs में एक लाल रंग का pigment (रंग) होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहा जाता है। यह हीमोग्लोबिन ही ऑक्सीजन के साथ मिलकर ऑक्सीहेमोग्लोबिन बनाता है।
- इन कणिकाओं में नाभिक (Nucleus) नहीं होता, जिससे इनमें अधिक स्थान मिलता है और यह ऑक्सीजन का अधिकतम मात्रा में परिवहन कर सकती हैं।
- RBCs का जीवनकाल लगभग 120 दिन होता है, और इसके बाद ये यकृत और प्लीहा में नष्ट होती हैं।
2. श्वेत रक्त कणिकाएं (WBCs - White Blood Cells):
- कार्य: श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का हिस्सा होती हैं और ये संक्रमण से लड़ने का काम करती हैं। यह बाहरी आक्रमणकर्ताओं जैसे बैक्टीरिया, वायरस, और अन्य रोगजनकों को नष्ट करती हैं।
- विशेषताएँ:
- WBCs के पास एक नाभिक होता है, और यह आकार में RBCs से बड़ी होती हैं।
- श्वेत रक्त कणिकाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं, जैसे न्युट्रोफिल्स, लिम्फोसाइट्स, मोनोसाइट्स, आदि, और प्रत्येक प्रकार का विशिष्ट कार्य होता है।
- WBCs शरीर में संक्रमण के दौरान तेजी से बढ़ती हैं और शरीर की सुरक्षा करती हैं। इनका जीवनकाल कुछ घंटों से लेकर कुछ वर्षों तक हो सकता है, यह उनके प्रकार पर निर्भर करता है।
3. प्लेटलैट्स (Platelets):
- कार्य: प्लेटलैट्स रक्त के थक्के बनाने में मदद करती हैं। जब शरीर में कोई घाव होता है, तो प्लेटलैट्स उस स्थान पर इकट्ठा हो जाती हैं और थक्का बनाकर रक्तस्राव को रोकने का काम करती हैं।
- विशेषताएँ:
- प्लेटलैट्स आकार में बहुत छोटी होती हैं और यह जीवित कोशिकाओं के रूप में नहीं होतीं, बल्कि ये कोशिकाओं के अवशेष होती हैं।
- प्लेटलैट्स का जीवनकाल लगभग 7 से 10 दिन होता है।
- थक्का बनाने की प्रक्रिया को "कोगुलेशन" कहा जाता है, और इसमें प्लेटलैट्स के अलावा अन्य रक्त प्रोटीन जैसे फिब्रिन भी शामिल होते हैं।
4. प्लाज्मा (Plasma):
- कार्य: प्लाज्मा रक्त का तरल भाग होता है, जो रक्त के अन्य घटकों को घोलकर शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुँचाता है। यह शरीर में पानी, पोषक तत्वों, खनिज लवणों, हार्मोन, और अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन करता है।
- विशेषताएँ:
- प्लाज्मा में लगभग 90% पानी होता है, जो इसे तरल बनाए रखता है।
- इसमें प्रोटीन जैसे एल्ब्यूमिन, ग्लोब्युलिन और फिब्रिनोजन शामिल होते हैं।
- प्लाज्मा खनिज लवण जैसे सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, और बाइकार्बोनेट भी घुला रहता है, जो शरीर के विभिन्न जैविक क्रियाओं में सहायता करते हैं।
- इसके अलावा, प्लाज्मा हार्मोन, एंटीबॉडीज, और अपशिष्ट पदार्थ जैसे यूरिया, अमोनिया, और कार्बन डाइऑक्साइड भी परिवहन करता है।
रक्त का कार्य:
रक्त का मुख्य कार्य शरीर के सभी हिस्सों में पोषक तत्व, ऑक्सीजन और हार्मोन भेजना और अपशिष्ट पदार्थों (जैसे CO₂, यूरिया) को शरीर से बाहर निकालना है। रक्त का यह परिवहन तंत्र शरीर की स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मानव उत्सर्जन तंत्र (Human Excretory System)
उत्सर्जन तंत्र शरीर में उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों (जैसे यूरिया) को बाहर निकालने का कार्य करता है। इसमें मुख्यतः निम्नलिखित अंग होते हैं:
1.वृक्क (Kidneys):
- वृक्कों में नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों को छानकर मूत्र बनता है। वृक्क की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाई 'वृक्काणु (Nephron)' होती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें निस्यंदन, पुनः अवशोषण, और स्रावण की प्रक्रिया होती है।
2.मूत्रवाहिनी (Ureter):
- यह वृक्कों से मूत्र को मूत्राशय में भेजती है।
3. मूत्राशय (Bladder):
- यह मूत्र को अस्थायी रूप से संग्रहित करता है।
4. मूत्र मार्ग (Urethra):
- मूत्राशय से मूत्र को बाहर निकालने का मार्ग है।
वृक्काणु (Nephron) का कार्य :
वृक्काणु (Nephron) किडनी (वृक्क) की संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई है। प्रत्येक किडनी में लगभग 1 मिलियन वृक्काणु होते हैं। इनका मुख्य कार्य शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को निकालना और रक्त से विषाक्त पदार्थों को छानकर मूत्र बनाना है। वृक्काणु की संरचना और कार्य को 3 प्रमुख प्रक्रियाओं में विभाजित किया जा सकता है:
1. निस्यंदन (Filtration)
- स्थान: यह प्रक्रिया ग्लोमेरुलस (Glomerulus) और बोमन कैप्सूल (Bowman's Capsule) में होती है।
- कार्य:
- जब रक्त वृक्क धमनी के माध्यम से वृक्काणु में प्रवेश करता है, तो यह ग्लोमेरुलस में स्थित छोटे रक्त वाहिकाओं (केशिकाओं) से गुजरता है।
- उच्च दबाव के कारण, रक्त का प्लाज्मा (जो पानी, खनिज, ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, और अपशिष्ट पदार्थ जैसे यूरिया, क्रिएटिनिन आदि शामिल होते हैं) बोमन कैप्सूल में फिल्टर हो जाता है।
- यह प्रारंभिक निस्यंदन (Initial Filtrate) कहलाता है, जो लगभग 180 लीटर प्रति दिन उत्पन्न होता है।
2. पुनः अवशोषण (Reabsorption)
- स्थान: यह प्रक्रिया प्रोक्षिमल कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल (Proximal Convoluted Tubule), लूप ऑफ हेनल (Loop of Henle), और डिस्टल कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल (Distal Convoluted Tubule) में होती है।
- कार्य:
- प्रारंभिक निस्यंदन में शामिल पदार्थों में से शरीर के लिए उपयोगी पदार्थ (जैसे पानी, ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, और कुछ लवण) को पुनः रक्त में अवशोषित किया जाता है।
- प्रोक्षिमल कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल में अधिकतर पुनः अवशोषण होता है, जिसमें ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, और पानी का प्रमुख रूप से अवशोषण होता है।
- लूप ऑफ हेनल में पानी और लवणों का पुनः अवशोषण होता है, जो शरीर में जल और सोडियम का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
- डिस्टल कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल में कुछ हद तक अतिरिक्त लवणों और पानी का अवशोषण होता है।
3. नलिका स्रावण (Tubular Secretion)
- स्थान: यह प्रक्रिया डिस्टल कन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल और कलेक्टिंग डक्ट (Collecting Duct) में होती है।
- कार्य:
- इसमें रक्त से कुछ अतिरिक्त पदार्थ जैसे यूरिया, अतिरिक्त पानी, और अधिक लवण ट्यूब्यूल्स में प्रवाहित होते हैं। ये पदार्थ नलिकाओं में सक्रिय रूप से परिवहन होते हैं।
- यूरिया, पोटैशियम, हाइड्रोजन आयन, और ड्रग्स जैसे पदार्थ जो रक्त में अधिक हो सकते हैं, इन्हें नलिकाओं में भेजा जाता है।
- यह मूत्र निर्माण के अंतिम चरण को पूरा करता है, और इस प्रकार से अवशोषित किए गए पदार्थों का संतुलन बनाए रखा जाता है।
4. मूत्र का निर्माण (Urine Formation)
- इन सभी प्रक्रियाओं के बाद, जो पदार्थ वृक्काणु में रहते हैं, उन्हें मूत्र कहा जाता है।
- यह मूत्र कलेक्टिंग डक्ट में एकत्रित होता है और फिर मूत्रवाहिनी (Ureter) के माध्यम से मूत्राशय (Bladder) में जमा होता है।
कुल मिलाकर, वृक्काणु का कार्य:
- शरीर के रक्त से अपशिष्ट पदार्थों (जैसे यूरिया, क्रिएटिनिन) को हटाना।
- शरीर के लिए उपयोगी पदार्थों (जैसे पानी, ग्लूकोज, अमीनो अम्ल) को पुनः अवशोषित करना।
- रक्त में संतुलन बनाए रखना, जैसे पानी, लवण, और pH को नियंत्रित करना।
- मूत्र का निर्माण करना और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना।
पादप में उत्सर्जन
• वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा पादप अतिरिक्त जल से छुटकारा पाते हैं।
• बहुत से पादप अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं।
• अन्य अपशिष्ट पदार्थ (उत्पाद) रेजिन तथा गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित रहते हैं
पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।