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Chapter 08 : आनुवंशिकता और विकास

अनुवंशिकी (Genetics)

अनुवंशिकी जीव विज्ञान की वह शाखा है जो जीवों में जीन, आनुवंशिक भिन्नता और आनुवंशिकता के अध्ययन से संबंधित है। यह अध्ययन जीवों की विशेषताओं और लक्षणों के अगली पीढ़ी में संचार को समझने में मदद करता है।

आनुवंशिकता (Heredity):

आनुवंशिकता का अर्थ है माता-पिता से संतान में लक्षणों का संचार। यह प्रक्रिया जीन के माध्यम से होती है, जो आनुवंशिक सूचनाओं को वहन करते हैं। उदाहरण के लिए, त्वचा का रंग, आंखों का रंग, और बालों की बनावट। आनुवंशिकता ही संतान के विकास और शारीरिक विशेषताओं के निर्धारण में मुख्य भूमिका निभाती है।

जीन :

जीन डीएनए (Deoxyribonucleic Acid) का एक खंड होता है जो जीव के लक्षणों को नियंत्रित करता है। यह माता-पिता से संतान में आनुवंशिक जानकारी का संचार करता है। प्रत्येक जीन किसी न किसी जैविक कार्य के लिए जिम्मेदार होता है। जीन कोशिकाओं के केंद्रक (Nucleus) में स्थित गुणसूत्रों (Chromosomes) पर उपस्थित होते हैं।

 

जीन के कार्य (Role of Genes):

  • जीन लक्षणों और विशेषताओं के विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन के उत्पादन को नियंत्रित करते हैं।

  • ये आनुवंशिक बीमारियों, शरीर की संरचना और व्यवहार तक को प्रभावित कर सकते हैं।

  • प्रत्येक जीन का एक विशेष कार्य होता है, जैसे कि आंखों का रंग, रक्त समूह या शरीर की ऊंचाई।

  • उदाहरण:

    • रक्त समूह का निर्धारण ABO जीन के माध्यम से होता है।

    • हेमोग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन HBB जीन द्वारा नियंत्रित होता है।

    • आंखों के रंग के लिए OCA2 और HERC2 नामक जीन जिम्मेदार होते हैं।

लक्षणों के प्रकार (Types of Traits):

  1. अर्जित लक्षण (Acquired Traits):

    • अर्जित लक्षण डीएनए में परिवर्तन नहीं करते।

    • ये लक्षण जीवनकाल के दौरान विकसित होते हैं लेकिन अगली पीढ़ी को हस्तांतरित नहीं होते।

    • उदाहरण: मांसपेशियों का विकास, संगीत सीखना।

  2. वंशानुगत लक्षण (Inherited Traits):

    • वंशानुगत लक्षण जीन में परिवर्तन करते हैं।

    • ये लक्षण माता-पिता से संतान को हस्तांतरित होते हैं।

    • उदाहरण: ऊंचाई, त्वचा का रंग, आंखों का रंग।

विविधता (Variation):

विविधता का अर्थ है किसी प्रजाति के विभिन्न व्यक्तियों में पाए जाने वाले अंतर।

  • उदाहरण: आंखों का रंग, बालों का रंग, त्वचा का रंग।

विविधता का महत्व (Importance of Variation):

  1. यह प्राकृतिक चयन को प्रोत्साहित करता है।

  2. विविधता अनुकूलन और अस्तित्व में सहायता करती है।

  3. यह विकास (Evolution) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  4. विविधता जीव को बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति प्रतिरोधक बनाती है।

ग्रेगोर मेंडल के प्रयोग (Mendel’s Experiment):

  • ग्रेगोर मेंडल ने मटर के पौधों पर प्रयोग किए और मोनोहाइब्रिड तथा डायहाइब्रिड क्रॉस के परिणामों का अध्ययन किया।

ग्रेगोर मेंडल ने अपने प्रयोगों के लिए मटर के पौधे (Pisum sativum) को चुना क्योंकि इनमें आनुवंशिक अध्ययन के लिए उपयुक्त कई विशेषताएँ पाई जाती हैं। मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

 

  1. स्पष्ट विपरीत लक्षण (Distinct Contrasting Traits):

    • मटर के पौधों में जैसे बीज का रंग (पीला या हरा), बीज की बनावट (गोल या झुर्रीदार), फूलों का रंग (बैंगनी या सफेद) जैसे स्पष्ट रूप से भिन्न लक्षण पाए जाते हैं।
    • इससे भिन्न लक्षणों का अध्ययन करना आसान हो गया।
  2. स्वयं परागण (Self-Pollination) की सुविधा:

    • मटर के पौधों में प्राकृतिक रूप से स्वयं परागण होता है जिससे शुद्ध जातियाँ (Pure Lines) प्राप्त की जा सकती हैं।
    • यह सुनिश्चित करता है कि एक ही पौधे की संतान में स्थिर लक्षण होते हैं।
  3. परागण को नियंत्रित करने की सुविधा (Easy to Control Pollination):

    • मेंडल ने मटर के पौधों में क्रॉस-परागण (Cross-Pollination) आसानी से किया और दो भिन्न लक्षणों के पौधों को मिलाकर अध्ययन किया।
  4. संक्षिप्त जीवन चक्र (Short Life Cycle):

    • मटर के पौधों का जीवन चक्र छोटा होता है, जिससे परिणाम जल्दी प्राप्त होते हैं।
    • इससे कई पीढ़ियों का अध्ययन कम समय में संभव हो पाया।
  5. अधिक संतान उत्पन्न करना (Large Number of Offspring):

    • मटर के पौधे एक बार में बड़ी संख्या में बीज उत्पन्न करते हैं।
    • इससे सांख्यिकीय (Statistical) रूप से सटीक परिणाम प्राप्त हुए।
  6. संकर पौधों का अध्ययन (Hybridization):

    • मटर के पौधों में संकर (Hybrid) पौधे आसानी से विकसित किए जा सकते हैं, जिससे नई विशेषताओं का अध्ययन करना सरल होता है।
  7. लक्षण पीढ़ी दर पीढ़ी समान रहते हैं (Stable Inheritance):

    • मटर के पौधों में लक्षण स्थिर रहते हैं और अगली पीढ़ी में समान रूप से संचारित होते हैं, जिससे निष्कर्ष निकालना आसान हुआ।
          लक्षण प्रभुत्व (Dominant) लक्षण अल्पता (Recessive) लक्षण
बीज का आकार गोल ( ⚪️ Round)
सिकुड़ा (🟢 Wrinkled)
बीज का रंग पीला ( 🟡Yellow)
हरा (Green)
फल का आकार फूल (🍈Inflated)
सिकुड़ा (Constricted)
फल का रंग हरा (🟢 Green)
पीला (🟡Yellow)
फूल का रंग बैंगनी (💜 Purple)
सफेद (⚪️White)
फूल का स्थान अक्षीय (🌸 Axial)
शीर्षक (🌿Terminal)
पौधे की ऊंचाई लंबा (🌱Tall)
बौना (🌾 Dwarf)


मेंडल ने इन विशेषताओं का उपयोग कर आनुवंशिकता के नियमों (Laws of Inheritance) की खोज की, जो आज भी आनुवंशिकी के अध्ययन में महत्वपूर्ण हैं।

मोनोहाइब्रिड क्रॉस (Monohybrid Cross):

मोनोहाइब्रिड क्रॉस एक ऐसे प्रयोग को कहते हैं जिसमें एक लक्षण की विरासत का अध्ययन किया जाता है। मेंडल ने मटर के पौधों की ऊंचाई के आधार पर मोनोहाइब्रिड क्रॉस किया। उन्होंने एक लंबे पौधे (TT) और एक बौने पौधे (tt) को क्रॉस किया।

 

           

F1 पीढ़ी (First Filial Generation):

  • सभी पौधे लंबे (Tt) होते हैं क्योंकि प्रभावी जीन (T) बौने जीन (t) को छुपा लेता है।

F2 पीढ़ी (Second Filial Generation):

  • जब F1 पीढ़ी के पौधों को आपस में क्रॉस कराया गया तो F2 पीढ़ी में पौधों का अनुपात 3:1 पाया गया।

    • 3 पौधे लंबे (TT और T

    • t) और 1 पौधा बौना (tt) होता है।

F2 पीढ़ी का फेनोटाइपिक अनुपात: 3:1 (तीन लंबे : एक बौना) F2 पीढ़ी का जीनोटाइपिक अनुपात: 1:2:1 (TT : Tt : tt)

डायहाइब्रिड क्रॉस (Dihybrid Cross):

डायहाइब्रिड क्रॉस वह क्रॉस है जिसमें दो लक्षणों की विरासत का अध्ययन किया जाता है। मेंडल ने बीज के रंग (पीला या हरा) और बीज की बनावट (गोल या झुर्रीदार) के आधार पर डायहाइब्रिड क्रॉस किया।

F1 पीढ़ी: सभी पौधे पीले और गोल बीज वाले (YyRr) होते हैं।

F2 पीढ़ी: जब F1 पीढ़ी के पौधों को आपस में क्रॉस कराया गया तो F2 पीढ़ी में फेनोटाइपिक अनुपात 9:3:3:1 पाया गया।

 

  • 9 पौधे पीले और गोल बीज वाले।

  • 3 पौधे पीले और झुर्रीदार बीज वाले।

  • 3 पौधे हरे और गोल बीज वाले।1 पौधा हरा और झुर्रीदार बीज वाला।

मेंडल के नियम (Mendel’s Laws):

  1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance):

    • किसी लक्षण के दो विपर्यासी जीन में से एक जीन प्रभावी होता है और दूसरा अप्रभावी।

  2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation):

    • प्रत्येक जीन के दो युग्मविकल्पी (Alleles) अलग-अलग होते हैं और संतान में एक ही युग्मविकल्पी जाता है।

  3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment):

    • विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से संतान

    •  में जाते हैं।

मानव में लिंग निर्धारण (Sex Determination in Humans):

मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है जो 23 के जोड़े में होते हैं। इनमें से 22 गुणसूत्र नर और मादा में समान और अपने-अपने जोड़े के समजात होते हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से समजात गुणसूत्र (Autosomes) कहते हैं।

23वें जोड़े के गुणसूत्र स्त्री और पुरूष में समान नहीं होते जिन्हे विषमजात गुणसूत्र (heterosomes/ allosomes) कहते हैं।

  • XX - मादा (Female)

  • XY - नर (Male)

पुरुष के शुक्राणु (Sperm) में X या Y गुणसूत्र होता है जबकि स्त्री के अंडाणु (Ovum) में हमेशा X गुणसूत्र होता है। यदि शुक्राणु X गुणसूत्र लाता है तो संतान लड़की (XX) होगी, और यदि Y गुणसूत्र लाता है तो संतान लड़का (XY) होगा।
 

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