जनन: वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सजीव अपने जैसे नए जीव उत्पन्न करते हैं ।
जनन के महत्त्व
कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी . एन . ए . ( DNA- डिऑक्सीराइबो न्यूक्लीक अम्ल ) के अणुओं में आनुवंशिक गुण होते हैं
डीएनए प्रतिकृति का महत्व
1)डीएनए द्विगुणन अनुवांशिक सूचनाओं के वाहक का कार्य करता है तथा सभी आनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से पीढ़ी में पहुंचाता है।
2) इसमें कोशिका के अन्य घटकों, जैसे प्रोटीन और आरएनए अणुओं का निर्माण करने के निर्देश होते हैं।
3) यदि प्रजनन के दौरान डीएनए की नकल नहीं की जाती है, तो सही प्रोटीन नहीं बनेगा और व्यक्ति की संरचना पूरी तरह से अलग होगी।
4) डीएनए द्विगुणन एक पीढ़ी के गुणों को अगली पीढ़ी में बनाये रखताहै, जिसका उपयोग अगली पीढ़ी के विकास में किया जा सकता है।
प्रजनन के दो प्रकार हैं
(i).अलैंगिक प्रजनन
(ii).लैंगिक प्रजनन
(i) अलैंगिक प्रजनन
(ii) लैंगिक प्रजनन
अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ( Various form of Asexual Reproduction)
(I). विखंडन( Fission ) –
इस प्रक्रम में एक कोशिका दो या दो से अधिक कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है विखंडन एक कोशकिए जीव मे देखने को मिलता है
यह दो प्रकार के होते हैं
(a) द्विखंडन — इसमें एक कोशकिए जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है । उदाहरण - अमीबा
(b) बहुविखंडन: मूल कोशिका अधिक संतति कोशिकाओं में विभाजित/विभाजित हो जाती है उदाहरण के लिए- प्लाज्मोडियम
(2) मुकुलन – इस प्रक्रम में , जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं । यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है । उदाहरण— हाइड्रा(multicellular organism), यीस्ट
3). पुनरुद्भवन ( पुनर्जनन ) – इस प्रक्रम में किसी कारणवश , जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है उदाहरण — प्लेनेरिया , हाइड्रा
(4).खंडन – इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे - छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है । ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं । उदाहरण— स्पाइरोगाइरा
(5). बीजाणु समासंघ – कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं । बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ती से रक्षित होती हैं । अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं ।
(6). कायिक प्रवर्धन—कुछ पौधों में नए पौधे का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़, तना
पत्तियाँ आदि से होता है, इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
(a) प्राकृतिक विधियाँ( natural vegetative propagation
(b) कृत्रिम विधियाँ( artificial vegetative propagation)
ऊतक संवर्धन - इस विधि में शाखा के सिरे से कोशिकाएँ लेकर उन्हें पोषक माध्यम में
रखा जाता है। ये कोशिकाएँ गुणन कर कोशिकाओं के गुच्छे जिसे कैलस कहते हैं में परिवर्तित हो जाती है। कैलस को हॉर्मोन माध्यम में रखा जाता है, जहाँ उसमें विभेदन होकर नए पौधे का निर्माण होता है जिसे फिर मिट्टी में रोपित कर देते है।
उदहारण-आर्किक, सजावटी पौधे।
कायिक संवर्धन के लाभ(Advantages of vegetative propagation)
1.बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे; जैसे—केला, गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं।
2.नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं।
3.पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है।
लैंगिक प्रजनन ( Sexual Reproduction )
(1) एकलिंगी पुष्प:
(2) उभयलिंगी पुष्प:
Structure of flower
i) Sepals(बह्यादल) :
a) ये हरे और पत्ती की आकार के होते हैं।
b) कली के खुलने से पहले तक यह कली की रक्षा करता हैं
ii) Petals(दल)
a) वे आम तौर पर बड़े, रंगीन दिखाई देते हैं;
b) कुछ में सुगंध भी होते है।
c) वे कीड़ों को आकर्षित करके परागण में मदद करते हैं।
iii) Stamens (पंगकेसर):
पुष्प मे पुंगकेशर पुरुष प्रजनन भाग है। प्रत्येक पुंगकेशर में दो भाग, filament(पुतंतु) और Anther(परागकोश)होते हैं।
a) (filament)पुतंतु, anther(परागकोश) को सहारा प्रदान करता है, जहां परागकण विकसित होता है
b) पुतंतु की शीर्ष पर उपस्थित होता है जो परागकोश (पीला रंग में) जो की परागकण उत्पन्न करता है।
iv) Carpels or pistil(स्त्रीकेशर):
यह स्त्री प्रजनन भाग है। प्रत्येक स्त्रीकेशर में तीन भाग वर्तिकाग्र,वर्तिका,अंडाशया होते हैं
a) Stigma(वर्तिकाग्र): यह वर्तिका से जुड़ा हुआ होता है और यह परागकण प्राप्त करता है
b) Style(वर्तिका): इसकी ट्यूब जैसी संरचना होती है जो वर्तिकाग्र को सहारा प्रदान करती है।
C) Ovary(अंडाशया): यह हिस्सा सूजन हुआ होता है। इसमें अंडकोशिका होती हैं। और यही मादा युग्मक भाग होता है।
पौधों में प्रजनन में मुख्य रूप से चार चरण शामिल होते हैं
(i). परागण (ii). निषेचन (iii). बीजों का बनना (iv).अंकुरण
(i) परागण
परागकणों का परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण होना परागण कहलाता है।
परागण के प्रकार :
1. स्व परागण :
2. पर-परागण :
(ii) निषेचन
निषेचन के लिए निम्नलिखित चरण होते हैं
(i) परागण के बाद परागकण वर्तिकाग्र पर उतरते हैं, फिर वे पराग नलिकाओं में प्रवेश करते हैं
(ii).प्रत्येक पराग नली में दो नर युग्मक होते हैं।
(iii). पराग नलिका अंडाशया तक पहुंचती है जहां अंडाणु स्थित होते हैं
(iv).पराग नली एक छोटे से छिद्र के माध्यम से अंडाणु में प्रवेश करती है जिसे माइक्रोपाइल कहा जाता है।
(iii).बीजों का निर्माण
निषेचन के बाद, युग्मनज बीजांड के भीतर एक भ्रूण बनाने के लिए कई बार विभाजित होता है। बीजांड एक सख्त कोट विकसित करता है और धीरे-धीरे बीजों में परिवर्तित हो जाता है।
(iv).अंकुरण
अनुकूल परिस्थितियों में बीजों के नए पौधों के रूप में विकसित होने की प्रक्रिया को बीजों का अंकुरण कहा जाता है।
मनुष्य में प्रजनन
यौवन के दौरान लड़कों और लड़कियों में सामान्य परिवर्तन
(I) ऊंचाई में अचानक वृद्धि।
(ii) शरीर के आकार में परिवर्तन
(iii) आवाज में बदलाव।
-लड़कों में आवाज गहरी हो जाती है
-लड़कियों में यह उच्च स्वर वाली आवाज होती है।
(iv) जनन अंग परिपक्व होने लगते हैं।
यौवन के दौरान लड़कों में परिवर्तन:
(I) दाढ़ी और मूंछ जैसे बाल चेहरे पर विकसित होते हैं।
(ii) कांख के नीचे, छाती पर और जांघ क्षेत्रों में बाल विकसित होते हैं।
(iii) आवाज गहरी हो जाती है।
(iv) मांसपेशियों का विकास होता है और कंधे चौड़े हो जाते हैं। वजन में वृद्धि।
C. यौवन के दौरान लड़कियों में परिवर्तन
(I) स्तनों का विकास होना
(ii) कांख के नीचे और जघन क्षेत्रों में बाल विकसित होना।
(iii) मासिक धर्म चक्र की शुरुआत।
(iv) कूल्हों के आसपास वसा का जमाव होना
(Puberty )यौवनारम्भ:यौवन वह अवस्था है जिसमे लड़के और लड़कियां यौन रूप से परिपक्व हो जाते हैं।
मानव प्रजनन प्रणाली में शामिल मुख्य अंग वृषण, अंडकोश, शुक्रवाहक, मूत्रमार्ग, लिंग आदि हैं।
वृषण- शुक्राणु और पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन करता हैं। वृषण में शुक्राणु बनते हैं।
वृषण कोश- शुक्राणुओं के निर्माण के लिए एक उचित तापमान प्रदान करता है। यह तापमान शरीर के सामान्य तापमान से 1- 3 डिग्री सेल्सियस कम होता है।
शुक्रवाहक: शुक्रवाहक एक लंबी, पेशी ट्यूब जैसी होती है जो एपिडीडिमिस से पेल्विक कैविटी में, मूत्राशय के ठीक पीछे से जाती है। शुक्रवाहक परिपक्व शुक्राणु को मूत्रमार्ग तक पहुंचाता है
शुक्राशय और प्रोस्टेट ग्रंथि:
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि अपना स्राव शुक्र वाहिका में डालते हैं जिससे शुक्राणु एक तरल माध्यम में आ जाते हैं। इसके कारण इनका स्थानांतरण सरलता से होता है। साथ ही यह स्राव उन्हें पोषण भी प्रदान करता है।
मूत्रमार्ग:
मूत्रमार्ग (urethra) शरीर में स्थित एक नलिका है जो मूत्राशय और शुक्राणु (urinary meatus) को को शरीर से बाहर निकलती है। यह मूत्र और शुक्राणु के लिए एक सामान्य मार्ग होती है।
शीशन: यह बाहरी पुरुष जननांग होता है जो मैथुन के दौरान शुक्राणुओं को महिला की योनि में स्थानांतरित करता है।
मादा प्रजनन प्रणाली(मादा जनन तंत्र)
(I).अंडाशय:
– मादा युग्मक अथवा अंड - कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है ।
-- लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं । यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं ।
● दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है । अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है ।अंडवाहिनी (फैलोपियन ट्यूब) : यह अंडाशय से अंडाणु या अंडाणु को गर्भाशय में ले जाती है। यह है
(ii) अंडवाहिका ( फेलोपियन ट्यूब ) अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है । अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है ।
(iii) गर्भाशय – यह एक थैलीनुमा संरचना है जहाँ पर शिशु का विकास होता है । गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता हैं ।
मानव में लैंगिक प्रजनन
(i) पुरुष जनक द्वारा शुक्राणु का निर्माण किया जाता है जबकि महिला जनक द्वारा अंड का निर्माण किया जाता है
(ii) मैथुन के दौरान शुक्राणु ऊपर की ओर प्रवेश करते हुए अंडवाहिनी (फैलोपियन ट्यूब) तक पहुँचते हैं और शुक्राणु , अंडा का निषेचन होता है जिससे की युग्मनज, गर्भाशय की परत में बनता है, जिसके परिणामस्वरूप नए जीव या संतान की पहली कोशिका का निर्माण होता है
(iii) युग्मनज कोशिका के विभाजन से भ्रूण बनाते है।
(iv) भ्रूण धीरे धीरे नीचेकीओरसरकजाताहै और गर्भाशय में प्रत्यारोपित हो जाता है।
माँ के गर्भ में भ्रूण का पोषण कैसे होता है ?
प्लैसेंटा —
यह एक विशिष्ट उत्तक हैं जिसकी तश्तरीनुमा संरचना गर्भाशय में होती है ।
इसका मुख्य कार्य—
(i) माँ के रक्त से ग्लाकोज ऑक्सीजन आदि ( पोषण ) भ्रूण को प्रदान करना ।
(ii) भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान ।
अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं । इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है
क्या हो जब अंडा निषेचित न हो?
यदि अंडे निषेचित नहीं हो पाता है तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहता है। चूंकि अंडाशय हर महीने एक अंडा परिपक्व करता है, इसलिए गर्भाशय भी हर महीने खुद को एक निषेचित अंडा प्राप्त करने के लिए तैयार करता है। इस प्रकार इसकी परत मोटी और स्पंजी हो जाती है। यदि निषेचन हुआ है तो भ्रूण को पोषण देने के लिए इसकी आवश्यकता होगी। लेकिन अब इस मोटी और स्पंजी पारत की आवश्यकता नहीं है। तो यह स्तर धीरे-धीरे टूट जाता है और योनि से रक्त और श्लेष्मा के रूप में बाहर निकल जाता है। यह चक्र लगभग हर महीने होता है और इसे मासिक धर्म या रजोधर्म या ऋतुस्त्राव के रूप में जाना जाता है। यह आमतौर पर लगभग 2-8 दिनों तक रहता है।
जनन स्वास्थ्य
जनन स्वास्थ्य का अर्थ है , जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक , मानसिक , सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना ।
रोगों का लैंगिक संचरण ( STD's ) : अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है
जैसे—
(a) जीवाणु जनित — गोनेरिया , सिफलिस
(b) विषाणु जनित – मस्सा ( warts ) , HIV AIDS कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है ।
गर्भरोधन – गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है ।
गर्भरोधन के प्रकार
( a) यांत्रिक अवरोध – शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता ।
उदाहरण - शिश्न को ढकने वाले कंडोम
- योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैप
( b ) रासायनिक तकनीक - ● मादा में अंड को न बनने देना , इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है । इनके अन्य प्रभाव ( विपरीत प्रभाव ) भी हो सकते हैं ।
(c) IUCD ( Intrauterine contraceptive device ) - लूप या कॉपर - T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है । जिससे गर्भधारण नहीं होता ।
(d) शल्यक्रिया तकनीक -
(i) नसबंधी – पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर , उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना ।
(ii) ट्यूबेक्टोमी – महिलाओं में अंडवाहनी को अवरुद्ध कर , अंड के स्थानांतरण को रोकना ।