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Chapter 06 : नियंत्रण और समन्वय

अध्याय - 06 : नियंत्रण और समन्वय

सभी जीवों का पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया करना एक सामान्य और आवश्यक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को उद्दीपन कहा जाता है, जिसका अर्थ है उन बाहरी और आंतरिक परिवर्तन, जिनके प्रति जीव प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण के तौर पर, प्रकाश, ऊष्मा, ठंडक, ध्वनि, सुगंध, और स्पर्श जैसे उद्दीपन होते हैं, जिनके अनुसार जीवों की प्रतिक्रिया होती है।


उद्दीपन और अनुक्रिया:

जब भी किसी प्रकार का उद्दीपन होता है, तो जीव उसमें प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण के लिए:

  • प्रकाश – पौधे प्रकाश की दिशा में बढ़ते हैं (प्रकाशानुवर्तन)।
  • ठंड़ा या गर्मी – शरीर अपना तापमान नियंत्रित करने के लिए वातावरण के अनुरूप अनुक्रिया करता है।

पौधे और जंतु दोनों अलग-अलग प्रकार से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते हैं। यह अनुक्रिया दो प्रमुख तंत्रों के द्वारा नियंत्रित होती है:


जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय:

जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय के लिए दो मुख्य तंत्र होते हैं:

  • तंत्रिका तंत्र (Nervous System)
  • अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine System)


(a) तंत्रिका तंत्र:

यह तंत्रिका तंत्र के माध्यम से त्वरित और सूक्ष्म प्रतिक्रियाओं की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। इसमें तंत्रिका कोशिकाएँ (न्यूरॉन्स) शामिल होती हैं, जो सूचना का आदान-प्रदान करती हैं और त्वरित प्रतिक्रियाओं का उत्पन्न करती हैं।


(b) अंतःस्रावी तंत्र:

यह तंत्रिका तंत्र की अपेक्षा धीमा होता है, लेकिन यह शरीर में दीर्घकालिक नियंत्रण और समन्वय करता है। अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हॉर्मोन का स्राव करती हैं जो विभिन्न शारीरिक कार्यों को नियंत्रित करते हैं।


ग्राही (Receptors):

ग्राही वे विशिष्ट तंत्रिका कोशिकाएँ होती हैं जो वातावरण से सूचना प्राप्त करती हैं। ये ग्राही विभिन्न ज्ञानेंद्रियों में स्थित होते हैं और अलग-अलग उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। निम्नलिखित ज्ञानेंद्रियों में पाए जाते हैं:

  • कान:
    • सुनने का कार्य करता है।
    • शरीर के संतुलन को बनाए रखता है।
    • ध्वनि और आसपास के संकेतों का पता लगाता है।
  • आंख:
    • प्रकाशग्राही होती है।
    • रंगों की तीव्रता और गुणात्मकता को पहचानने में मदद करती है।
  • त्वचा:
    • स्पर्श, तापमान (गर्म और ठंडा) का पता लगाती है।
    • चोट का अहसास (दर्दग्राही) करती है।
  • नाक:
    • गंध का पता लगाने में सहायक (गंधग्राही) होती है।
  • जीभ:
    • स्वाद (रस संवेदी) का पता लगाती है।


तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन):

तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई है। यह सूचना का आदान-प्रदान करती है और विभिन्न शरीर के हिस्सों तक संदेश पहुंचाती है।

तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) के भाग:

1. दुमिका (Dendrites):

  • यह तंत्रिका कोशिका के अंत से निकलने वाली शाखाएं होती हैं जो सूचना प्राप्त करती हैं।
  • दुमिका द्वारा प्राप्त सूचना विद्युत आवेग के रूप में तंत्रिका कोशिका के कोशिका काय में पहुंचती है।

2. कोशिका काय (Cell Body):

  • यह तंत्रिका कोशिका का केंद्रीय भाग है। यहां पर सूचना का प्रसंस्करण और विद्युत आवेग उत्पन्न होता है।

3. तंरिकाक्ष (Axon):

  • यह एक लंबी धागे जैसी संरचना होती है, जो कोशिका काय से विद्युत आवेग को दूसरे न्यूरॉन की दुमिका (Dendrite) या अन्य अंगों तक पहुंचाती है।
  • तंरिकाक्ष के अंत में सिनेप्स होते हैं, जहाँ तंत्रिका आवेग रासायनिक रूप में बदलता है और अगली कोशिका तक पहुंचता है।

तंत्रिका तंत्र का कार्य:

तंत्रिका तंत्र का मुख्य कार्य है शरीर में सूचना का आदान-प्रदान और त्वरित प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करना। जब किसी उद्दीपन (जैसे तापमान में बदलाव, किसी वस्तु का स्पर्श, या प्रकाश) की जानकारी किसी ग्राही से प्राप्त होती है, तो यह सूचना न्यूरॉन के माध्यम से तंत्रिका तंत्र तक पहुंचती है, जो उचित प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए अन्य अंगों को संकेत भेजता है।


अंतरग्रथन (सिनेप्स)

सिनेप्स वह स्थान है, जहाँ एक तंत्रिका कोशिका का अंतिम सिरा (न्यूरॉन का ऐक्सॉन) और दूसरी तंत्रिका कोशिका का दुमिका (डेंड्राइट) के बीच का स्थान होता है। यह एक छोटा रिक्त स्थान होता है। यहाँ पर विद्युत आवेग को रासायनिक संकेतों में बदला जाता है, जिससे तंत्रिका संकेत अगली कोशिका तक पहुंच सके। इस प्रक्रिया में रासायनिक न्यूरोट्रांसमीटर का उपयोग किया जाता है, जो एक कोशिका से दूसरी कोशिका में संदेश को भेजते हैं।


प्रतिवर्ती क्रिया

जब शरीर किसी उद्दीपन (जैसे गर्म वस्तु या तीव्र दर्द) के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया करता है, तो उसे प्रतिवर्ती क्रिया कहा जाता है। इस प्रकार की क्रिया तेज और तत्काल होती है, ताकि शरीर को किसी संभावित हानि से बचाया जा सके।

उदाहरण: यदि आप गर्म वस्तु को छूते हैं, तो आपके हाथ को तुरंत पीछे खींच लिया जाता है। यह एक प्रतिवर्ती क्रिया है, जिसमें मस्तिष्क से पहले मेरुरज्जु (स्पाइनल कॉर्ड) तक संदेश जाता है और तुरंत प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।


प्रतिवर्ती चाप

प्रतिवर्ती क्रिया के दौरान, जब विद्युत आवेग तंत्रिका तंतु के माध्यम से यात्रा करता है, तो जिस पथ से यह आवेग जाता है, उसे प्रतिवर्ती चाप कहा जाता है। यह चाप मेरुरज्जु से उत्पन्न होता है और तंत्रिका तंतु के माध्यम से शरीर के अंगों में भेजा जाता है।


अनुक्रिया के प्रकार

अनुक्रिया (response) तीन प्रकार की होती है:

1. ऐच्छिक (Voluntary Response)

  • यह प्रतिक्रिया तंत्रिका तंत्र के अग्र भाग, यानि अग्रमस्तिष्क (Cerebrum) द्वारा नियंत्रित होती है। ऐच्छिक प्रतिक्रियाएँ व्यक्ति की इच्छा से होती हैं।
  • उदाहरण: बोलना, लिखना।


2. अनैच्छिक (Involuntary Response)

  • यह प्रतिक्रिया मस्तिष्क के मध्य और पश्चमस्तिष्क (Midbrain and Hindbrain) द्वारा नियंत्रित होती है। यह प्रतिक्रिया स्वतः, बिना किसी पूर्व योजना के होती है।
  • उदाहरण: श्वसन, दिल का धड़कना।


3. प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action)

  • यह प्रतिक्रिया मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती है और यह अत्यधिक तेज होती है। प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की संलिप्तता नहीं होती, और यह प्रतिक्रिया तंत्रिका तंत्र के सीधे मार्ग से होती है।
  • उदाहरण: गर्म वस्तु छूने पर हाथ को तुरंत हटा लेना।

प्रतिवर्ती क्रिया की आवश्यकता

कई बार हमें तुरंत प्रतिक्रिया करनी होती है, ताकि शरीर को हानि न हो। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति गर्म वस्तु को छूता है या पैनी वस्तु चुभने पर, उसे तत्काल प्रतिक्रिया करनी होती है। यहाँ, प्रतिक्रिया मस्तिष्क द्वारा नहीं, बल्कि मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती है, जिससे समय की बचत होती है और हानि से बचाव होता है।


मानव तंत्रिका तंत्र

मानव तंत्रिका तंत्र दो मुख्य भागों में बांटा गया है:

1. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS)

  • इसमें मस्तिष्क और मेरुरज्जु आते हैं। यह तंत्रिका तंत्र का मुख्य नियंत्रक केंद्र है।


2. परिधीय तंत्रिका तंत्र (PNS)

  • यह तंत्रिका तंत्र का वह भाग है, जो मस्तिष्क और मेरुरज्जु को शरीर के विभिन्न हिस्सों से जोड़ता है। इसमें कपाल तंत्रिका (Cranial Nerves) और मेरु तंत्रिका (Spinal Nerves) शामिल हैं।


मस्तिष्क के भाग

मानव मस्तिष्क को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है:

1. अग्र मस्तिष्क (Cerebrum)

यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा और जटिल भाग है। यह सोचने, समझने, और विचार करने का केंद्र होता है। इसके मुख्य कार्य हैं:

  • मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग।
  • ऐच्छिक कार्यों को नियंत्रित करना (जैसे चलना, बोलना)।
  • सूचनाओं को याद रखना और समायोजित करना।
  • शरीर के विभिन्न हिस्सों से सूचनाओं को एकत्रित करना।


2. मध्यम मस्तिष्क (Midbrain)

यह भाग अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इसमें पुतली के आकार में बदलाव, शरीर की अवस्था में परिवर्तन आदि शामिल हैं।


3. पश्चमस्तिष्क (Hindbrain)

इसमें तीन प्रमुख संरचनाएँ होती हैं:

i. मेडुला ओब्लांगटा (Medulla Oblongata):  यह मस्तिष्क का वह भाग है जो जीवन के लिए आवश्यक अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है।

मुख्य कार्य:

रक्तचाप, श्वसन (respiration), हृदय गति, और अन्य आंतरिक अंगों के कार्यों का नियंत्रण।

वमन (vomiting), हिचकी (hiccups) और गले की गतिविधियाँ भी मेडुला द्वारा नियंत्रित होती हैं।

2. पोंस (Pons): यह मस्तिष्क के एक भाग के रूप में कार्य करता है, जो अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है।

मुख्य कार्य:

  • श्वसन क्रिया का नियंत्रण।
  • यह मस्तिष्क के विभिन्न भागों के बीच सूचना का आदान-प्रदान भी करता है।

3. सिरिबैलम (Cerebellum): यह शारीरिक संतुलन और गति को नियंत्रित करता है।


मस्तिष्क की संरचना

मस्तिष्क में कई संरचनाएँ होती हैं जो मिलकर कार्य करती हैं:

प्रमस्तिष्क (Cerebrum): यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है, जो शरीर के विभिन्न कार्यों की योजना, सोच और निर्णय लेने में शामिल होता है।


अग्रमस्तिष्क (Forebrain):
सोचने, योजना बनाने, और ऐच्छिक कार्यों (voluntary movements) के नियंत्रण का केन्द्र।


हाइपोथैलमस (Hypothalamus):
यह शरीर के तापमान, भूख, प्यास, नींद और हार्मोनल क्रियाओं को नियंत्रित करता है।


पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland):
यह हॉर्मोन का स्राव करती है और विकास और शारीरिक क्रियाओं के समन्वय में मदद करती है।


मध्यमस्तिष्क (Midbrain):
यह मुख्य रूप से अनैच्छिक क्रियाओं और शारीरिक संतुलन से संबंधित होता है।


पश्चमस्तिष्क (Hindbrain):
इसमें मेडुला, पॉन्स और अनुमस्तिष्क शामिल होते हैं जो श्वसन, रक्तचाप, और संतुलन का नियंत्रण करते हैं।


तंत्रिका तंत्र और कोशिकाएँ

तंत्रिका तंत्र का मुख्य कार्य शरीर के विभिन्न भागों से सूचना प्राप्त करना और उसे संसाधित करना है:

ज्ञानेंद्री तंत्रिका (Sensory Nerve): ये तंत्रिका कोशिकाएँ तंत्रिका तंत्र में सूचना भेजती हैं, जैसे त्वचा से तापमान की जानकारी।

प्रेरक तंत्रिका (Motor Nerve): ये तंत्रिका कोशिकाएँ मस्तिष्क से संदेश लेकर कार्य अंगों तक भेजती हैं।

सूचना प्राप्त व संसाधित करना: उद्दीपन (stimulus) के प्रति प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए जानकारी को एकत्रित किया जाता है और निर्णय लिया जाता है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है।


रासायनिक संचरण (Chemical Transmission)

जब तंत्रिका तंतु में विद्युत आवेग उत्पन्न होता है, तो उसे रासायनिक संकेत में बदला जाता है ताकि वह अगले न्यूरॉन तक पहुंच सके। यह प्रक्रिया न्यूरोट्रांसमीटर (जैसे डोपामाइन, सेरोटोनिन) द्वारा होती है, जो एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संदेश पहुंचाते हैं। इस रासायनिक संचरण के माध्यम से तंत्रिका तंत्र के कार्य में कोई रुकावट नहीं आती और क्रियाओं का सुचारु रूप से संचालन होता है।


पौधों में समन्वय और गति

पौधों में तंत्रिका तंत्र का अभाव होता है, लेकिन वे विद्युत-रासायनिक साधनों का उपयोग करके सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। पौधों में गति दो प्रकार की होती है:


(i) वृद्धि पर निर्भर गति (Growth-dependent Movement):

  • पौधों की गति वृद्धि के कारण होती है, जैसे प्रकाश की दिशा में वृद्धि करना। इसे प्रकाशानुवर्तन (Phototropism) कहा जाता है।
  • रासायनानुवर्तन (Chemotropism): पराग नली का अंडाशय की ओर बढ़ना।
  • जलानुवर्तन (Hydrotropism): जड़ें पानी की ओर बढ़ती हैं।


(ii) वृद्धि का गति पर निर्भर न होना (Non-growth-dependent Movement):

  • पौधे अपनी कोशिकाओं में पानी की मात्रा में परिवर्तन करके गति उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के लिए, छूने पर छुई मुई पौधों की पत्तियाँ सिकुड़ जाती हैं। इसे टैक्सी (Taxis) कहा जाता है।

पौधों में हॉर्मोन

पौधों के हॉर्मोन, जो रसायन होते हैं, पौधों की वृद्धि, विकास और प्रतिक्रिया का समन्वय करते हैं। प्रमुख पौधों के हॉर्मोन निम्नलिखित हैं:

(a) ऑक्सिन (Auxin):

  • यह हॉर्मोन शाखाओं के अग्रभाग में बनता है।
  • कोशिका की लंबाई में वृद्धि करता है।
  • प्रकाशानुवर्तन में सहायक होता है।


(b) जिब्बेरेलिन (Gibberellin):

  • तने की वृद्धि में सहायक होता है।


(c) साइटोकाइनिन (Cytokinin):

  • कोशिका विभाजन को बढ़ावा देता है और युवा कोशिकाओं में वृद्धि को उत्तेजित करता है।

(d) एब्सिसिक अम्ल (Abscisic Acid):

  • यह पौधों में तनाव का हॉर्मोन है और पत्तियों का मुरझाना नियंत्रित करता है।


जंतुओं में हॉर्मोन

जंतुओं में हॉर्मोन अंतःस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं, जो शरीर के विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करते हैं:

 

हॉर्मोन ग्रंथि कार्य
शरीर का हिस्सा
थायरॉक्सिन (Thyroxine) अवटुग्रंथि (Thyroid Gland) कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का उपापचय नियंत्रित करता है। गला (गर्दन के नीचे)
वृद्धि हॉर्मोन (Growth Hormone) पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland) विकास और शारीरिक वृद्धि को नियंत्रित करता है। मस्तिष्क (हाइपोथैलमस के नीचे)
एड्रीनलीन (Adrenaline) अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland) आपातकाल में रक्तचाप, हृदय की धड़कन और श्वसन की गति को नियंत्रित करता है। गुर्दा (किडनी के ऊपर)
इंसुलिन (Insulin) अग्न्याशय (Pancreas) रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है। पेट (ऊपरी पेट के पास)
लिंग हॉर्मोन (Sex Hormones) - - -
टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) अंडकोष (Testes) पुरुषों में लिंग विशेषताओं का विकास करता है। अंडकोष (Scrotum)
एस्ट्रोजन (Estrogen) अंडाशय (Ovaries) महिलाओं में लिंग विशेषताओं का विकास करता है। अंडाशय (Ovaries)

 

आयोडीन युक्त नमक की आवश्यकता:

आयोडीन युक्त नमक का सेवन इसलिए आवश्यक है क्योंकि अवटुग्रंथि (थायरॉइड ग्रंथि) को थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। थायरॉक्सिन हॉर्मोन शरीर के वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के उपापचय को नियंत्रित करता है, जिससे शरीर की संतुलित वृद्धि और विकास संभव होता है। यदि शरीर में आयोडीन की कमी होती है, तो अवटुग्रंथि ठीक से काम नहीं कर पाती, जिससे गॉयटर जैसी बीमारी उत्पन्न होती है, जिसमें गले में सूजन (गला फूलना) हो जाती है।


मधुमेह (डायबिटीज):

मधुमेह एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त में शर्करा (ग्लूकोज) का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है। इसका मुख्य कारण अग्न्याशय ग्रंथि द्वारा इंसुलिन हॉर्मोन का कम स्राव होना है। इंसुलिन हॉर्मोन रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है, और जब इसका स्राव पर्याप्त नहीं होता, तो रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है, जिससे मधुमेह की समस्या उत्पन्न होती है।

निदान (उपचार): इस बीमारी का उपचार इंसुलिन हॉर्मोन के इंजेक्शन द्वारा किया जाता है, ताकि रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित किया जा सके।


पुनर्भरण क्रियाविधि:

पुनर्भरण क्रियाविधि का मतलब है शरीर में हॉर्मोन के सही मात्रा में स्राव का नियंत्रण करना। यदि हॉर्मोन का स्राव अत्यधिक या न्यूनतम होता है, तो शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। पुनर्भरण क्रियाविधि यह सुनिश्चित करती है कि हॉर्मोन सही समय पर और सही मात्रा में स्रावित हो, ताकि शरीर के विभिन्न कार्य संतुलित रूप से चल सकें।

उदाहरण के लिए, रक्त में शर्करा के नियंत्रण की विधि:

  • जब रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ता है, तो अग्न्याशय इसे महसूस करता है।
  • फिर अग्न्याशय इंसुलिन का स्राव करता है।
  • इंसुलिन रक्त में शर्करा को नियंत्रित करता है और रक्त शर्करा का स्तर कम कर देता है।
  • जब रक्त शर्करा का स्तर सामान्य हो जाता है, तो अग्न्याशय इंसुलिन का स्राव बंद कर देता है।

 

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